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शनिवार, 27 मार्च 2010

जिन्दगी को दर्शाती हुई ये कविता

आज मुझे एक पुरानी कविता याद आ रही हैं . और आप सबको पेश करना चाहूँगा .
मुझे नही मालूम कि ये किन महाशय कि लिखी हुई हैं फिर भी मै उनका आभारी हूँ  और उनको इसके  लिये धन्यवाद करता हूँ 

1. जिन्दगी को दर्शाती हुई ये कविता 



* इतनी ऊंची मत छोडो कि गिर पड़ोगे जमीन पर
   क्योंकि खुले आसमान में सीढिया नही होती

* मत करो बुढ़ापे में इश्क कि तमन्ना 
    क्योंकि फ्यूज बल्बों में बिजलिया नही होती

* रोज रोज क्यों नहाते हो वजन मत घटाओ 
    वो बदन ही क्या जिसमे खुजलिया नही होती

* ये तो आम जनता हैं चाहे चूष लो जितना
     ये वो आम हैं जिनमे गुठलिया नही होती

* सबको लगानी हैं उस रजिस्टर पे हाजिरी
    क्योंकि मौत वाले दफ्तर में छुट्टिया नही होती 

गुरुवार, 25 मार्च 2010


बुजुर्गो का सम्मान करे क्योंकि एक दिन आप को भी बुजुर्ग होना हैं.


श्याम सुंदर जी को इस बात का अफ़सोस हैं कि उनका लड़का मोहन उनकी बात नही सुनता हैं.
  रामचंद्र  जी को खाली घर काटने को दौड़ता हैं. 
शिवराम  जी को इस बात का ख्याल सताता हैं कि भरा पूरा परिवार होने के बावजूद भी उनका दिल इतना तन्हा क्यों हैं.

ये सब बातें सुनने में तो बहुत आसान लग रही हैं. लेकिन कभी इन सब के बारे में जरा गहराई से सोचकर तो देखो .
जरा इस बात का अहसास करके तो देखो कि हम जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं और वो हमसे बोलना भी पसंद ना करे तो हम पर क्या बीतेगी .
वैसे भी कहते हैं कि शादी के बाद घरवालो के बजाये अपनी श्रीमती जी ज्यादा अच्छी लगती हैं और जब बच्चे हो जाये तो उनपर तो श्रीमती जी से भी ज्यादा प्यार आने लगता हैं. कई बार तो जितने भी झगडे हो तो सहमती बच्चो के कारण ही बन पाती हैं. ये तो रहा यहाँ तक का सफ़र , अब जरा सोचिये जब उन बच्चो कि शादी हो जाती हैं तो प्रकर्ती का नियम , दोबारा वही बात वहीँ  से शुरू हो जाती हैं. लेकिन अब अगर वो बच्चे जिन्हें हम अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं और जिनकी एक छोटी सी  दर्द भरी आवाज से हम पूरी रात नही सो पाते थे अगर अब वो हमसे बोलना भी पसंद ना करे तो हम पे क्या गुजरेगी. 

हाँ ये बात जरुर  होती हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी सोच में बदलाव आता जाता हैं . और आज हम अपने आप को अपने माता- पिता से ज्यादा समझदार मानते हैं , कल हमारे बच्चो के साथ भी तो यही होना हैं. ये भी सोचकर चलिए.
किसी ने सही कहा हैं कि 
"जवानी जाकर आती नही हैं और 
बुढ़ापा आकर जाता नही हैं "

वो कंधे जो हमें हमेशा ऊपर उठाने के लिये तैयार रहते थे क्या आज हम सिर्फ उनसे प्यार से बात भी नही कर सकते ?

ये हमेशा याद रखना कि उन्होंने हमें जन्म दिया हैं तो कम से कम हम उनसे ऊरीण तो ना हो .
उन्होंने आपको बचपन में संभाला तो आपकी भी जिम्मेदारी बनती हैं कि उन्हें बुढ़ापे में संभाले क्योंकि बुढ़ापा भी बचपन का दूसरा रूप हैं.

मुझे एक बात  याद आ रही हैं जरा गौर करियेगा 

" कल जब हम छोटे थे और कोई हमारी बात भी नही समझ पाता था तब सिर्फ एक हस्ती थी जो हमारे टूटे - फूटे अल्फाज भी समझ लेती थी , और आज हम उसी हस्ती को ये कहते हैं कि 
(आप नही जानती )
(आप नही समझ पाएँगी) 
(आपकी बात मुझे समझ नही आती )
(हो गयी अब आप खुश )

आप समझ ही गये होंगे कि में  किस कि बात कर रहा हूँ.
तो इस सम्माननीय हस्ती का सम्मान करे इससे पहले कि देर हो जाये.
 
"शख्त रास्तो में भी आसान सफ़र लगता हैं

ये उसे  माँ कि दुवाओ का असर लगता हैं

एक मुद्दत से उसकी माँ नही सोई जब

उसने कहा था कि 'माँ मुझे डर लगता हैं"

बस सोच लेना जैसा अपने माता - पिता के साथ करोगे तो आप के बच्चे भी तो आप से ही सीखते हैं , वो भी वैसे ही करेंगे .
तो क्यों ना उनको अच्छी सीख दे अपनी अच्छी बातों से .
और उन्हें बुजुर्गो कि सेवा और प्यार करना सिखाये .
आगे चलकर ये आपके मान सम्मान कि बात होगी.
कुच्छ समय घर में बुजुर्गो के साथ अवश्य बिताये .और फिर देखना उनके प्यार और दुवाओ कि आप पर कैसे अच्छी बरसात होती हैं
संजीव राणा 
हिन्दुस्तानी

बुधवार, 24 मार्च 2010

अगर आप भारतीय हैं तो इस पर ध्यान जरुर देंगे

अगर आप भारतीय हैं तो इस पर ध्यान जरुर देंगे

आज के दिन कि सुरुआत ही कुच्छ ऐसी हुई कि बस पूछिए मत .
फिर क्या था सारा दिन ही ख़राब हो गया. गुस्सा किसी का किसी और पे उतार दिया.
घर से श्रीमती जी के सन्देश मोबाइल पे आते रहे और हमने उनको सुबह कि नमस्कार तक भी नही की.
हुआ यू कि मेरे एक मित्र ने बताया कि कैसे उसे एक छोटे से काम के लिये सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े. 


फिर मन भी अंदर ही अंदर कुचाले मारने लगा और फिर संजीव राणाजी के ख्यालो के घोड़ो ने दौड़ना शुरू कर दिया .
दौड़े तो ऐसे दौड़े कि रुकने का नाम ही नही लिया.
बड़ी मुश्किल से समझाया कि तुम चिंता मत करो ब्लॉग जगत मै एक से एक घुड़सवार (अकल्मन्द ) हैं जो तुम्हारी बेचैनी को दूर करेंगे .
फिर क्या था जी वो मान तो गए लेकिन शांत होते होते काफी सवाल छोड़ गये.


देश का काम कैसे चल रहा हैं जब आसपास देखे तो सारे ही कामचोर नजर आते हैं?
अब जो मैंने पढ़ा हैं उसको पढ़कर तो किसी भी ईमानदार भारतीय को शर्म मेह्सूश हो जायेगी 
लीजिये आप भी पढिये और एक सच्चे भारतीय कि हैसियत से जो भी इसका उपचार हो पाये तो मुझे बताइये और अगर गुस्सा आये तो खुलकर अपनी भडाश निकालिये.


और लिख डालिये जो भी मन में आये .





Latest update after Swiss Bank has agreed to disclose the funds&

Our Indians' Money - 70, 00,000 Crores Rupees In Swiss Bank
 

1) Yes, 70 lakhs crores rupees of India are lying in Switzerland banks. This is the highest amount lying outside any country, from amongst 180 countries of the world, as if India is the champion of Black Money. 

2) Swiss Government has officially written to Indian Government that they are willing to inform the details of holders of 70 lakh crore rupees in their Banks, if Indian Government officially asks them. 

3) On 22-5-08, this news has already been published in The Times of India and other Newspapers based on Swiss Government's official letter to Indian Government. 

4) But the Indian Government has not sent any official enquiry to Switzerland for details of money which has been sent outside India between 1947 to 2008.. The opposition party is also equally not interested in doing so because most of the amount is owned by politicians and it is every Indian's money. 

5) This money belongs to our country. From these funds we can repay 13 times of our country's foreign debt. The interest alone can take care of the Centers yearly budget. People need not pay any taxes and we can pay Rs. 1 lakh to each of 45 crore poor families. 

6) Let us imagine, if Swiss Bank is holding Rs. 70 lakh Crores, then how much money is lying in other 69 Banks? How much they have deprived the Indian people? Just think, if the Account holder dies, the bank becomes the owner of the funds in his account. 

7) Are these people totally ignorant about the philosophy of Karma? What will this ill-gotten wealth do to them and their families when they own/use such money, generated out of corruption and exploitation? 

8) Indian people have read and have known about these facts. But the helpless people have neither time nor inclination to do anything in the matter. This is like "a new freedom struggle" and we will have to fight this. 

9) This money is the result of our sweat and blood.. The wealth generated and earned after putting in lots of mental and physical efforts by Indian people must be brought back to our country.
 

10) 
As a service to our motherland and your contribution to this struggle, please circulate at least 10 copies of this note amongst your friends and relatives and convert it into a mass movement.


-- 
Warm Regards,
SANJEEV RANA





पर्तिक्षा में 
संजीव राणा 
हिन्दुस्तानी 

सोमवार, 22 मार्च 2010

जिन्दगी में बढ़ता तनाव और आतम हत्या

अनिल पुसाद्कर जी के लेख आतम हत्या को पढ़कर सचमुच मन सोचने को मजबूर हो गया है की आखिर क्या क्या कारण हो सकते हैं की एक आदमी आतम हत्या के रास्ते  को चुनता हैं.

क्यों उसको ऐसा लगने लगता हैं की उसके लिए इस दुनिया में जीना मरने से भी मुश्किल  हो गया  हैं.

ये  जानकर हर बार दुःख होता हैं की फिर आज फलां बच्चे ने suside कर लिए हैं.
इसके  कारण तो बहुत हैं और मै ये समझता हु की जब तक ये अफरा - तफरी का दौर चलता रहेगा तब तक ये बातें भी  होती ही रहेगी.
हम भारतीय बहुत ही भावुक होते हैं और अपनी भावनाओं को अपने बच्चो  पर थोपते हैं.
होता यू हैं की हम खुद जब अपनी जिन्दगी में कुछ  काम नही कर पातें तो अपने बच्चो को आशा के रूप में देखने लगते हैं.
बिना इसकी परवाह किये की क्या वह इसके लिए तैयार हैं .और हम अपनी मानसिकता ऐसी बना लेते हैं की हमें किसी भी कीमत पर वो चीज़  चाहिए .
इसके लिए उनपर हमेशा दबाव बनाते रहते हैं.
आपने अपने आसपास काफ़ी माता- पिता को यह कहते सुना होगा कि पडोसी के बच्चे की तो फर्स्ट division आई हैं तो तेरी क्यों नही आई. उसने ये मैडल लिया हैं तूने  क्यों नही लिया .
तू उसके जितना क्यों नही पढता हैं.
वो कितना अच्छा हैं और तू कहा भी नही मानता हैं.
ये सब बातें कहने वाला तो आराम से कह जाता हैं यह जाने  बिना की जो सुन रहा है उसके जीवन में ये बातें कितना अंतर पैदा कर देगी.
आज आप किसी  भी विद्यालय  के पास जाकर देखो कि  बच्चो के कंधो पे इतना बोझ होता हैं कि  सायद इतना तो उनमे खुद में भी नही होता होगा. 
पहले भी तो अच्छे विद्यार्थी होते थे ऐसी तो बात नही की अब अलग पढाई पढ़ी जा रही हैं .


फिल्म  अभिनेता आमिर खान ने तो अपनी पिछली दोनों फिल्मो में  यही बताने का प्रयाश  किया हैं कि  हर बच्चा अपने आप में खास  हैं और उसकी किसी दूसरे से तुलना भी नही की जानी  चाहिए.  " तारे जमीन पे" और three idiots इसका एक अच्छा उदाहरण हैं


मेरे  ख्याल  से इन सबका सबसे अच्छा हल तो ये हैं कि  हम अपने बच्चो को हालात  से जूझना सिखाये . उनमे हार या असफलता का डर ख़त्म  करे .
उनको उनकी हर कौशिश पे ये समझाया जाये की बेटा तुम कौशिश करो और कभी हार या असफलता से मत घबराओ  .
कभी रिजल्ट खराब आये तो उनको विश्वास  में लेकर ये सिखाओ की कोई बात नही हैं जो तू असफल हो गया हैं.
जिन्दगी में सिर्फ यही  अकेला अवसर नही था जो तूने  खो दिया है. तू हिम्मत कर और इस हार के कारणों को दूर करते  हुए तब तक कौशिश कर जब तक ये हार जीत में ना बदल जाए .
उसके मन से असफल होने का डर निकालकर अपने प्यार को उसकी ताकत बनाकर तो देखो . फिर देखो की  वो जीवन के हर संघर्ष और तनाव   को कैसे संजीदगी , उत्साह और आतम विश्वास  के साथ लेता हैं.
क्योंकि
" दोस्तों समय को तो बीत ही जाना  हैं चाहे हम उस दौरान  हँसे या रोये. जब बीतना ही हैं तो क्यों ना हँस के बिताये  .
क्योंकि ये ना हो की हम अपने अहम् और दुनिया के competition में यह भी भूल जाये कि  ये जीवन अनमोल हैं और हमें इसको ऐसे ही नही गवाना हैं.


ये मेरी एक छोटी सी कौशिश थी जो मेरे जहन में आ रही थी और मैंने काफी ऐसे लोगो को देखा हैं जो इस तरह की सोच रखकर आज खुश हैं 
अनिल जी का धन्यवाद् जो इस अहम् मुद्दे पे सुरुआत की.
और आप सभी से भी यही  चाहूँगा की अपनी राय या और अच्छे सुझाव इन सब तनाव को कम करने के लिए टिपण्णी के रूप में  नज़र जरुर करोगे.


जीना इसी का नाम हैं
जब तक जीयो हँस  के जीयो 

शनिवार, 20 मार्च 2010

किसी भी देश की पहचान उसके जागरूक नागरिको से होती हैं ........

कोई देश  तब तक  आगे नही बढ़ सकता जब तक उसके नागरिक कर्मठ होकर उसके मान और सम्मान के  बारे में लगातार प्रयास ना करे.
जिस तरह से घर में माताजी या फिर श्रीमती जी चावल को देखने के लिए  कि क्या वो अच्छी  तरह से उबल गए  हैं, सिर्फ  दो या  चार दानो को उठाकर देख लेती हैं  और हर एक चावल को देखने की जरुरत नही पड़ती , ऐसे ही किसी देश के नागरिको को जानने के लिए ये जरुरी नही हैं कि  हर एक के घर जाकर पता किया जाये कि  वो कैसा हैं.
मै तो बस इतना कहना चाहता हूँ कि  जब हम किसी विदेशी से बात करते हैं या फिर हम कही बाहर होते हैं तो हमारा जैसा आचरण होगा उससे हमारे रहने के स्थान के बारे में दूसरो को पता चलेगा . हम बचपन से सुनते आ रहे हैं की फलां देश में गए हमारे बन्दे के साथ वहा के नागरिक ने ऐसा किया और हम सीमा बना देते हैं की वहा मत जाना वहा तो ऐसे लोग हैं जो ऐसा करते हैं.
आजकल ये टीवी के जरिये भी काफी प्रचार  किया जा रहा हैं कि  अतिथि देवो भव: . 
ये कोई आज की बात नही हैं हमारी संस्कृति में तो ये  शुरू से ही विद्यमान हैं.
पर फिर भी आज इन सब बातो की जरुरत महसूस हो रही हैं.
अतः आप सभी से सिर्फ ये गुज़ारिश है की जब कभी भी आप किसी से बात करते हो तो ये ख्याल जरुर रखना की उन बातो  का ना सिर्फ उस व्यक्ति पे बल्कि हमारे देश पर भी फर्क पड़ता हैं
और कम से कम एक आम नागरिक ये तो कर ही सकता हैं देश के लिए.
क्यों मैंने गलत कहा क्या कुछ. .  
अब मै आप को कुछ बताना चाहता हूँ कि  क्यों मुझे ये सब लिखने की जरुरत पड़ी.
ये करीब दो साल पहले की बात हैं. आपने आजकल न्यूज़ में भी सुना होगा कि  कैसे एक भारतीय डॉक्टर  ने अफगानिस्तान में लगे इन्द्रागांधी अस्पताल कंप में रहने वाली एक अफगानी ट्रांसलेटर सबीरा नाम की यूवती से शादी  की.  कुछ दिनों तक उसके साथ रहने के बाद वो उसे वही पे छोड़कर इंडिया आ गया.
सबीरा के घर वालो ने उसका साथ दिया और उसने इंडिया आकर उस डॉक्टर पर तीन केस किये जिनमे से दो केस वो जीत चुकी हैं और एक केस अभी चल रहा हैं.
सबीरा भारतीय कानून और यहाँ के नागरीको के प्रति  खुश हैं और कहती हैं कि  भारतीय कानून में उसकी पूरी श्रधा   हैं और वो तब तक यहाँ लडती रहेंगी जब तक उसे पूरी तरह न्याय नही मिल जाता.


देखा आपने कि  कैसे किसी की व्यक्तिगत गलती के कारण एक पूरे देश को शर्मशार होना पढ़ जाता हैं.

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

जारी हैं .......

जारी हैं .......


अब तथाकथित मोलवी , साधू , संत और पादरी जो नित्य खबरों में अपने अपने कुकर्मो के कारण आते रहते हैं आप क्या समझते हैं की वो कीसी धरम के अनुयायी हैं.
ऐसा कुछ  नहीं हैं .
वो सिर्फ उन धर्मो का ही नाश नही कर रहे हैं जिनसे वो जुड़े हुए हैं बल्कि वो तो उस श्रेष्ठ आस्था का भी खात्मा कर रहे हैं जो अँधा विश्वाश करके ऐसे पापियों का अनुशरण सिर्फ ये सोचकर करते हैं की सायद उनको उन धरम गुरुवो के सानिध्य से परभउ भगती या मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी
पर होता ऐसा कुछ भी नही हैं
और रहा सवाल गुरु ज्ञान का तो गुरु तो कोई भी हो सकता हैं जिसमे आपको क्या अछि बातें नजर आये .
वो अपने माता पिता और घर में से कोई भी हो सकता हैं 


अत ऐसी कीसी भी सोच का समर्थन केवल ये सोचकर न करे की इसने भगवा कपडे पहने हैं तो ये अच्छा साधू होगा 
गुरु कोई भी हो सकता हैं जो अछ्हा ज्ञान दे .

ये तो आस्था की बात हैं .........

ये तो आस्था की बात हैं .........

अभी  कुच्छ समय पहले ही एक ब्लॉग पर एक रोचक जंग देखि की कौन सा धरम बड़ा या छोटा हैं या फिर किस धरम में क्या खामी हैं
मुझे वो सब देखकर सच पूछिए तो मजा भी आ रहा था और गुस्सा भी
मजा इसलिए की ये समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या चाहते हैं 
कोई कह रहा था की हिन्दू धरम में ये खामी हैं या इस्लाम में ये खामी हैं
मेरा मानना हैं की कीसी के धरम में कुछ  खामी नही हैं 
खामी हैं तो उसे अपनाकर उसका गलत इस्तेमाल करने वालो में ?
सिर्फ मुझे तो एक बात का पता हैं की कीसी का धरम ये नही सीखाता की कीसी से नफरत करो .
क्या कभी कीसी पेड़ को छाया देते वक़्त ये सोचते देखा हैं की में इस बन्दे को क्यों दू ये तो फला धरम  से हैं 
क्या सूर्य को भी ऐसे ही करते देखा हैं नहीं ना
बात सिर्फ इतनी सी हैं की धरम जोड़ना सीखाता हैं न की तोडना 
अगर तोड़े तो वो धरम नही वैसे भी धरम इंसान को रास्ते पे लाने के लिए बनाये गए हैं की जब कभी भी वो गलत चलने लगे तो वो उसका मार्गदर्शन कर सके .

गुरुवार, 11 मार्च 2010

जारी हैं .....
ये बात नही हैं की वो लोग इसका जवाब नही दे सकते .
मगर जब कोई आदमी काफी कुछ  कर जाता हैं देश के लिए,  तो वो देश का का हो जाता हैं . फिर ऐसे लोग अपने मान सम्मान और परतिष्ठा के कारण ऐसा कुछ  भी करने से डरते हैं
चलो जाने देते हैं इन सब बातों को जिनका कुछ वजूद ही नहीं हैं .
ठीक हैं ना.