मुझे बहुत ही आहत् मन के साथ कहना पड़ रहा हैं कि आप लोग ब्लॉग पर क्या करने निकले थे और क्या करने चल दिए.
कभी सोचा हैं इस बारे मे ?
मैंने कुंवर जी के ब्लॉग पे जो टिपण्णी की थी वो सिर्फ अपने मन के कुछ संदेह मिटाने के लिए की थी.
चलो कोई बात नही. अब में सलीम भाईजान और कुंवर जी से इस बात के लिए निवेदन करूँगा की ये सांप्रदायिक बातें बंद करे और अगर सोहार्द न फैला सको तो कोई बात नही पर जहर फैलने से तो रोक सकते हो?
और सलीम भाईजान "मुझे नही पता की कुछ समय पहले ब्लॉग पे क्या हुआ था की आपका नाम कभी फिरदौस बहन के कारण तो कभी गिरी जी के कारण तो कभी कुंवर जी के कारण हमेशा चर्चा मे रहा. मैंने अपने एक लेख मे सिर्फ ये लिखा था की " जो लोग औरत को दिखावे का साधन मानते है उन्हें शर्म आणि चाहिए. पर किसी अजाज भाई ने मुझे टिपण्णी की की चलो सलीम भाई को कोई तो साथी मिला और साथ मे उसने ये भी कहा की वो इस मुद्दे पे मेरे साथ नही हैं, तो मुझे आप मे दिलचस्पी हुई."
लेकिन भाई ये भी जायज हैं की अगर कोई किसी के धरम के बारे कुछ ऐसा वैसा लिखेगा तो कौन सहन करेगा.
आपसे और कुंवर जी से सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा की प्यार फैलाओ, गुस्सा और नफरत फैलाने का काम तो आतंकवादी और अलगाव वादी कर ही रहे हैं.
ऐसा ना हो की आप लोग भी उनकी ही फेहरिस्त मे अपने आपको नजर आते पाओ.
और रही धरम की बात तो में बस एक बात कहना चाहूँगा की कोई धरम ऐसा नही हैं की जो अपने आप मे सम्पूरण हो ?
क्या कोई हैं ऐसा?
हर धरम पे समय का परभाव पड़ता ही रहता हैं .
चाहे महाभारत का समय हो चाहे रामायण का और चाहे तो हजरत साहिब का.
आने वाली पीढ़ी अपने हिसाब से इन सब को गलत और ठीक ठहराती रहती हैं .
अगर ऐसा ना होता तो आज धरम के नाम पे इतने मतभेद ना हुए होते?
तो भाई में ब्लॉगजगत के बुद्धिजीवियो से भी अनुरोध करूँगा की वो बीच मे आकार फैलते हुए इस जहर को रोकने मे मेरे साथ खड़े हो ?
सलीम भाई से निवेदन हैं की आप कभी इन मुद्दों को छोड़कर मुस्लिम तालीम और अन्य बुराइयो को दूर करने के लिए ब्लॉग पे आन्दोलन चला सकते हैं . शिक्षा को तो इस्लाम मे बुरा नही मानते होंगे न?
और जब लोग शिक्षित होंगे तो फिर ऐसी बुराई को दूर करने मे जरा भी परेशानी नही आएगी.
कुंवर जी आप से भी अनुरोध हैं की आगे से ऐसे लेख का जवाब भी ना दीजिए की जिसमे धरम के कारण कुछ गलत होने वाला हो .
अगर धरम अच्छा हैं तो प्रचार की जरुरत ही नही हैं.
आशा करता हूँ की मेरे इस विनम्र निवेदन की तरफ ध्यान द्नेगे और अगर कुछ बुरा लगा हो तो मुझे माफ कर देंगे.
सबसे बड़ा हैं मानव धर्म और जो ये सिखाता है कि दूसरे धरम का सम्मान करो.
सलीम भाईजान और कुंवर जी ,
आपका शुभचिंतक
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
आपने बहुत सही बात रखी पर मुझे लगता है कुंवर जी तो मान जायेंगे सलिम से उम्मीद रखना फिजूल है
जवाब देंहटाएंराणा जी, आपकी चिंता बहुत ही शुभ है!
जवाब देंहटाएंएक बार एक शराबी गली में खड़ा सभी आने जाने वालो को गालिया(वो भी बेहद गन्दी वाली) दे रहा था!सभी परेशान तो थे पर सोच रहे थे चला जाएगा,सो कुछ नहीं बोल रहे थे!
अब हो गयी बहुत ज्यादा देर,आदमी-औरत सभी तंग!जो मुसाफिर थे,वो चले जाते,जो वही रहने वाले थे वो तो तड़प रहे थे उसके मुख से ये सब सुन-सुन कर!अब किसी नए खून से रहा ना गया और वो उलझ गया जी उस से!तब एक बुजुर्गवार बोले-"अरे वो तो शराबी है!तुन क्यों उसके साथ पागल हो रहे हो!"
अब मै सोचता हूँ कि क्या शराबी को प्रमाण पत्र मिल जाता है कुछ भी कहने का!क्या उसे सच में होश नहीं होता?
उसे रोकने का कोई कारण नहीं?और जो अपने होशो-हवाश में पागलपन दिखाए उनको?
मै पहले ही कह चुका हूँ कि मेरी पोस्ट का किसी भी धर्म के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है!
कुंवर जी,
अति सुन्दर ... उच्च विचार हैं आपके, पर अफ़सोस हर किसीका विचार ऐसा नहीं होता है !
जवाब देंहटाएंअगर धरम अच्छा हैं तो प्रचार की जरुरत ही नही हैं.
जवाब देंहटाएंहम कुंबर जी से सहमत हैं उन्होंने मानबता की हर हद तोडने वाले गद्दारों को बहुत सही तरीके से समझाने की कोशिस की है पर आतंकवादी को समझाना या मनाना इतना ही आसान होता तो ये आतंकवाद आज भारत के कोने कोने में इस तरह खून नहीं बहा रहा होता।
जवाब देंहटाएंलोहे को लोहे या फिर डायमंड से ही काटा जा सकता है
राणा जी हम आपसे पूरी तरह सहमत हैं और आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुती सार्थक सोच की अभिव्यक्ति /
जवाब देंहटाएं@kunwar ji आप की बात भी ठीक हैं और लोग भी आप के प्रति ज्यादा नरम हैं सलीम भाई की तुलना मे.
जवाब देंहटाएंलेकिन कई मौके पर इज्जत वाला व्यक्ति ऐसे शराबी के मुह नही लगता हैं
और बहुत अच्छा लगा की आपने अपनी टिपण्णी मे ये जोड़ा की आपका किसी के धर्मं से कोई मतलब नही हैं .
काश आपकी ये बात सलीम भाई जान भी समझ पाते .
वो तो मैंने भी पोस्ट मे लिखा था की कोई भी अपने धर्म के प्रति गलत बातें सहन नही कर सकता हैं और इस बाबत सलीम को चेताया भी था .
कोई बात नही कई बार परमिट ना देकर हम इग्नोर करते हैं ना.
जब आप लोग इनका जवाब देना बंद कर दोगे तो वो खुद ही ऐसा प्रचार करने से बाज आ जायेंगे
आप के जवाब से मे संतुस्ट हूँ और सलीम भाई के जवाब का इन्तेजार कर रहा हूँ
@ नरेश जी का धन्यावाद मेरे इस लेख का समर्थन करने के लिए.
@होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी आपका भी आभार जी.
@ कुंवर जी
जवाब देंहटाएंलेकिन कई बार करनी पड़ जाती हैं कुंवर जी.
हम अपने रिश्ते वालो और अपने संबंधियो को भी तो काफी बार सहन करते हैं
फिर आप तो सलीम को सलीम भाईजान कहते हो तो कुछ .......?
राणा साहब-भाई जान कह रहा था तो ही कही भी कटु शब्द या कटु भाषा का प्रयोग नहीं किया!मुझे लगा था कि वो अपनी किरकिरी ज्यादा करवा रहे है एक ही बात दोहरा-दिहरा कर,तो सोचा उनको चेता दूं!अगली पोस्ट में उनको समर्थन कि बात भी कही थी और उनके लिए अच्छी भावना थी इसीलिए तो उनको एक पक्ष और दिखाना चाहा था बात का!
जवाब देंहटाएंबहारहाल भाई-चारा एकतरफा ही निभाया जाता है क्या?
और ये तुलना आप कहा की कहा करने लगे भाई!कुछ विचार करो इस बात पर!
कुंवर जी,