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मंगलवार, 11 मई 2010

क्या हम उनके लिये कुछ भी नहीं छोड़ेंगे ?


अब से मे अपने कुछ ब्लॉग बंद कर रहा हूँ क्योंकि अब थोड़ी समय की थोड़ी कमी हो गई हैं .
अतः आगे से मे जो कुछ भी लिखूंगा वो एक या दो ब्लॉग पे ही होगा.

ये लेख मैंने अपने एक ब्लॉग "जीना इसी का नाम हैं" पे लिखा था  और अब इसे यहाँ पेश कर रहा हूँ
और जीना  इसी का नाम हैं  को बंद करने की सोच रहा हूँ 



परसों रात कुछ ऐसा अनुभव हुआ जिसको महसूस करके मुझे ऐसा
लगा जैस कि आने वाले समय का पता चल गया हो.
या कह लीजिये कि आने वाले वक़्त कि मुसीबतो से दो दो हाथ हो गये हो .
हुआ यू कि आंधी के कारण जिस जगह पे मै रहता हूँ वहा कि बिजली दोपहर  दो और तीन बजे के बीच चली गई.
इन्तेजार करते करते काफ़ी समय हो गया लेकिन बिजली थी कि आने का नाम ही नही ले रही थी.
शाम के पांच बज गये, फिर छः और नो और फिर दस.
विद्युत् महाराज जी का कुछ भी तो नही पता चल पाया कि आखिर गई कहा. आज तो आँख मिचोनी भी नही कि इसने.
हम भी अपने घुमंतू यंत्र (मोबाइल ) कि रोशनी में खाना खाकर सो गये .
थोड़ी देर बाद का अहसास काफी दुखदाई था. हमारा घुमंतू यंत्र भी बार बार low battery- low battery चिल्ला रहा था ऐसे मानो कोई मरता हुआ आदमी एक एक सांस के लिये चिल्लाता हैं. मुझे प्यास लगी तो मैंने जैसे ही बोत्तल कि तरफ देखा तो हैरान रह गया. उसमे एक बूँद भी पानी नही था. फिर मैंने आसपास अपने मित्रो के पास जाकर देखा तो वहा भी मुझे पानी नही मिल पाया. पानी कि प्यास, ऊपर से गर्मी फिर शरीर भी बेचैन होने लगा.
फिर क्या था मैंने पानी को तलाशने का काम पूरे जोर शोर से शुरू कर दिया.
घर घर गया, मगर ये क्या कही भी पानी नही . मै पानी पानी चिल्ला रहा था मगर पानी था कि मानो बीरबल कि खिचड़ी हो गई. मैंने मटके, फ्रिज और यहाँ तक कि लोगो के घर तक भी छान मारे.
अब तो मारे प्यास के दम निकले जा रहे थे
तभी एक झटके के साथ मेरी आँख खुल गई. समय हुआ था  रात के एक बजकर तीस मिनट. अब जाकर बिजली आई और पंखे ने भी अपनी सेवाए देनी शुरू कर दी. मैंने भगवान् का शुक्र मनाया कि ये एक सपना था. और पास में पड़ी बोत्तल से जी भर पानी पिया. 
अब आप ही सोचिये कि जैसे हम अपने प्राकृतिक स्त्रोत्र का नाजायज दोहन और उनको व्यर्थ बहा रहे हैं तो आने वाली पीढ़ी के लिये तो ये सिर्फ एक सपना ही बनकर रह जायेंगे .  क्या हम उनके लिये कुछ भी नही छोड़ेंगे ?

तो जागो इससे पहले कि काफी देर हो जाये.

1 टिप्पणी:

  1. आपकी आंख खुली तो मुझे भी चैन आया। कि भाई सपना देख रहा था।
    पानी की तलब तो मुझे भी हो आई है, शुक्र है पास ही बोर है और नल भी चल रहा है। मटका भी लबालब है।

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